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अलंकार लक्षण-परिभाषा-प्रकार- SANSKRIT ALANKAR LAKSHAN PRIBHASHA PRAKAR

लंकार:

अलंकार संस्कृत

अलंकार शब्‍द का  सामान्‍यार्थ है- आभूषण।  'अलम्' अव्‍ययपूर्वक 'कृ' धातु से 'घञ्' प्रत्‍यय से निष्‍पन्‍न हुआ है ।  अलंकार शब्द की तीन व्युत्पत्ति है -
1. अलंकरोति इति अलंकार: ( अस्‍यार्थ: - शब्दार्थौ सुशोभयति स:)
2. अलंक्रियते अनेन इति अलंकार: ( अस्‍यार्थ: - शब्‍दार्थयो: अलंकरणं क्रियते येन)
3. अलंकरणम् अलंकार:/अलंकृति: अलंकार: ( अस्‍यार्थ: - अलंकरणस्‍य भाव: एव अलंकार:) ।

लंकार की परिभाषाएं (लक्षण)-

भगवान वेदव्‍यास के अनुसार  -

अलंकारविहीनं काव्‍यं विधवास्‍त्रीसदृशं भवति । 

अग्निपुराण के अनुसार  -

अलंकाररहिता विधवैव सरस्वती।

वामन (काव्यालंकारसूत्र) के अनुसार  -

सौन्दर्यमलंकार:

महाकवि पीयूषवर्ष जयदेव ने  अपने ग्रन्‍थ 'चन्‍द्रलोक' में कहा है -
''अंगीकरोति य: काव्‍यं शब्‍दार्थावनलंकृती ।
असौ न मन्‍यते कस्‍मादनुष्‍णमनलंकृती ।।

भामह आचार्य (काव्यालंकार) ने अलंकार के विषय में कहा है – 

''न कान्‍तमपि निर्भूषं विभाति वनिताननम्'' (आभूषण के विना सुन्‍दरी स्‍त्री भी सुशोभित नही होती है) ।

आचार्य दण्‍डी ने काव्‍य की शोभा बढ़ाने वाले धर्मो को अलंकार मानते है

 ''काव्‍यशोभाकरान् धर्मानलंकारान् प्रचक्षते'' 

आचार्य मम्मट के अनुसार अलंकार -
''उपकुर्वन्ति तं सन्‍तं ये अंगद्वारेण जातुचित् ।
हारादिवदलंकारास्‍ते अनुप्रासोपमादय:'' ।।

साहित्‍यदर्पणकार विश्‍वनाथ के अनुसार -
''शब्‍दार्थयोरस्थिरा ये धर्मा: शोभातिशायिन: ।
रसादीनुपकुर्वन्‍तो अलंकारास्‍तेदंगदादिवत् ।।
 निष्‍कर्ष रूप में कह सकते है कि जैसे अनेक प्रकार के आभूषण मनुष्यों की शोभा बढ़ाते हैं  उसी प्रकार  अलंकार भी साहित्‍य की श्रीवृद्धि करते हैं । अलंकार, साहित्‍यशास्‍त्र का महत्‍वपूर्ण अंग है । 

सन्धि प्रकरण भी अवश्य पढ़े    👉   सन्धि प्रकरणम् 

अलंकारस्‍य भेदा:

प्राय: सभी आचार्यो ने शब्‍द और अर्थ को काव्‍य का शरीर स्‍वीकृत किया है । अलंकार उस शब्‍दार्थ रूपी-काव्‍यशरीर के शोभाधायक धर्म है । अतः अलंकार के आधारभूत शब्‍द और अर्थ ही है । इसी आधार पर अलंकार को दो प्रकार का माना गया है-

''ते च‍ द्विविधा: शब्‍दगता: अर्थगताश्‍च ।''                            किन्‍तु आचार्यविश्‍वनाथ द्वारा किया गया  विभाजन अत्‍यधिक समीचीन प्रतीत होता है -

1. शब्‍दालंकार:, 2. अर्थालंकार:, 3. उभयालंकार: ।

1. शब्‍दालंकार: - 

जो अलंकार शब्‍दो के सौन्‍दर्य से काव्‍य की शोभा बढ़ाते हैं वे शब्‍दालंकार कहलाते है । इसका लक्षण है  - 'शब्‍दपरिवृत्‍यसहत्‍वम्' अर्थात् जहाँ  शब्‍द का परिवर्तन करके उसके स्थान पर उसका  पर्यायशब्‍द रख देते है तो वह अलंकार ही  नही दिखाई देता है  अर्थात अलंकार उस शब्‍दविशेष के कारण से ही था, जो उस शब्द विशेष को परिवर्तित करते ही नष्ट हो गया। 

 शब्‍दालंकार : है-

1.अनुप्रास          2 यमक             3. श्लेष

4. क्रोक्ति         5. पुनरुक्ताभास      6. चित्रालंकार

2. अर्थालंकार: - 

जो अलंकार अर्थ के सौन्‍दर्य से काव्‍य की शोभा बढ़ाते हैं वे अर्थालंकार कहलाते है । इसका लक्षण है - 'शब्‍दपरिवृत्तिसहत्‍वम्' अर्थात् जहाँ शब्‍दपरिवर्तन के बाद भी  अलंकार की सत्‍ता समाप्त नही होती है वह अर्थालंकार होता है । जैसे- अर्थान्तरन्यास अलंकार।

3. उभयालंकार: - 

यह अलंकार शब्‍द और अर्थ दोनों पर आ‍धारित होता है ।  इसका लक्षण है- 'शब्‍दपरिवृत्यसहत्‍वम्' और 'शब्‍दपरिवृत्तिसहत्‍वम्'  ।  इसमें शब्‍दालंकार और अर्थालंकार दोनों के गुण सम्मिलित होते है । 

* अलंकार शास्त्र के प्रथम आचार्य- भामह।

इस अध्याय में हमने विभिन्न आचार्यो के मतानुसार अलंकार के लक्षणों तथा अलंकार के भेदों (प्रकार) के बारे में जाना | अगले अध्याय में हम विभिन्न शब्दालंकारो तथा अर्थालंकारो के लक्षण और उदाहरणो के बारे में विस्तार से पढ़ेंगे, तब तक के लिए-

             जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम्  
अलंकार लक्षण-परिभाषा-प्रकार- SANSKRIT ALANKAR LAKSHAN PRIBHASHA PRAKAR Reviewed by Sanskrit Guide on 4:27 am Rating: 5

3 टिप्‍पणियां:

  1. सर जी Reet के हिसाब से आप अगर पीडीएफ फाइल अपलोड करवाते तो ठीक रहता हमें पढ़ने में आसानी रहती।
    आप कृपया करके इन सभी की पीडीएफ फाइल अपलोड करवाएं तो हमारे लिए आसान हो जाता

    जवाब देंहटाएं

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