अनुप्रास अलंकार लक्षण- उदाहरण- ANUPRAS ALANKAR LAKSHAN- UDAHARAN
अनुप्रास अलंकार:
अनुप्रास अलंकारस्य लक्षणं –
'वर्णसाम्यमनुप्रास:' । (आचार्यमम्मट:)
'अनुप्रास: शब्दसाम्यं वैषम्येऽपि स्वरस्य यत्' । (आचार्यविश्वनाथ)
तात्पर्य – स्वरो की विषमता होते हुए भी जहाँ व्यंजनो की समानता हो तो वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है ।
शब्दसाम्यं = व्यंजनों की समानता,
वैषम्येऽपि स्वरस्य
= स्वरों की असमानता ।
अनुप्रास शब्द
'अनु +प्र + आस' शब्द से मिलकर निष्पन्न हुआ है । जिसका अर्थ है-
रसादे: अनुकूलं शब्दविन्यास:
।
अनुप्रास शब्द की व्यूत्पत्ति –
''रसाद्यनुगतत्वेन प्रकर्षेण न्यासोनुप्रास:'' । अर्थात् रसो के अनुकूल
न्यास (वर्णानां रचना
विन्यासो:) ही अनुप्रास है
।
अनुप्रास अलंकारस्य भेदा: -
साहित्यदर्पणकार के अनुसार अनुप्रास अलंकार
के पाँच भेद
है ।
1. छेकानुप्रास:
- व्यंजन समुदाय की एक ही बार आवृत्ति।
2. वृत्यानुप्रास:
- व्यंजन या व्यंजन समुदाय की अनेक बार आवृत्ति।
3. श्रुत्यानुप्रास:
- एक ही उच्चारण स्थान वाले वर्ण समुदाय की आवृत्ति।
4. अंत्यानुप्रास:
- पाद के अंत में तुकान्त स्थिति।
5. लाटानुप्रास: -
शब्द और अर्थ की आवृत्ति, परन्तु तात्पर्य भेद हो।
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अनुप्रास के उदाहरण-
1. ततो मृगेन्द्रस्य मृगेन्द्रगामी,
वधाय वध्यस्य शरं शरण्यः।
जाताभिषंगोर्नृपतिर्निषंगादुद्धर्तुमैच्छत्
प्रसभोधृतारि।।
मृगेन्द, वध, शर,
षंग आदि में वर्णो की समानता है।
2. आदाय बकुलगन्धान्धीकुर्वन पदे पदे भ्रमरान् ।
अयमेति मन्दं मन्दं कावेरीवारिपावन: पवन: ।।
उपर्युक्त उदाहरण में ''गन्धान्धी'' शब्द में 'न' 'ध' वर्ण की, 'कावेरीवारि' शब्द में 'व' 'र' वर्ण की, पावन: पवन: शब्दों में 'प' 'व' 'न' वर्णों की समानता प्राप्त है यद्यपि स्वर भिन्न भिन्न हैं । अत: यहाँ छेकानुप्रास अलंकार है ।
अनुप्रास के अन्य उदाहरण-
1. विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं, प्रच्छन्न-गुप्तं धनं,
विद्या भोगकरी यशः सुखकरी, विद्या गुरूणां गुरुः।
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने, विद्या परा देवता,
विद्या राजसु पूज्यते न हि धनं, विद्याविहीनः: पशुः।।
('विद्या' पद की
बार-बार आवृत्ति होने से वृत्यनुप्रास अलंकार है।)
2. दृशा दग्धं मनसिजं जीवयन्ति दृशैव याः।
(ज-ज-य-श-य इनका उच्चारण स्थान तालु, अत: श्रुत्यनुप्रास
अलंङ्कार हुआ है)
3. केश: काशस्तबकविकासः, कायः प्रकटितकरभविलासः।
चक्षुर्दग्धवराटकल्पं त्यजति न चेतः काममनल्पम्।।
(यहाँ विकास- विलासः, कल्पम्- अनल्पम् में तुकान्तता
है, अत: अन्त्यानुप्रास अलङ्कार हुआ है)
4. नयने तस्यैव नयने च।
(नयन का अर्थ एक, लेकिन तात्पर्य भिन्न, अत: लाटानुप्रास
अलङ्कार हुआ है)
5. ''लताकुंजं गुंजन्मदवदलिपुंजं चपलयन्
समालिड्गन्नड्ग, द्रुततरमनड्गं प्रबलयन् ।।
मरुन्मन्दं मन्दं दलितमरविन्दं तरलयन्
रजोवृन्दं विन्दन् किरति मकरन्दं दिशि-दिशि ।।
6. अनङ्गरङ्ग प्रतिमं तदङ्ग भङ्गीभिरङ्गीकृत मानताङ्ग्याः ।
कुर्वन्ति यूनां सहसा
यथैताः स्वान्तानि शान्तपरिचिन्तनानि।।
यहाँ
नङ्ग, रङ्ग, दङ्ग, भङ्गी, रङ्गी इत्यादि शब्दों में वर्ण साम्य है। अतः यहाँ अनुप्रास
अलङ्कार है।
7. "श्रिय:पति श्रीमति शासितुं जगत् जगतां निवासो वसुदेवसद्मनि।
वसन्ददर्शावतरन्त
मम्बरद्धिरण्यगर्भाङ्ग भुवं मुनिं हरिः ।।
यहाँ पति, मति जगत्, जगतां इन शब्दों में कहीं
स्वर-व्यञ्जन दोनों का कहीं व्यञ्जन मात्र का साम्य है। अतः यहाँ अनुप्रास
अलंकार है।
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इस अध्याय में हमने अनुप्रास अलंकार के लक्षण, उसके भेदों (प्रकार) तथा उदाहरणो के बारे में पढ़ा | अगले अध्याय में हम अन्य शब्दालंकारो तथा अर्थालंकारो के लक्षण और उदाहरणो के बारे में विस्तार से पढ़ेंगे, तब तक के लिए-
जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम्
Lakshan
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा जी
जवाब देंहटाएंPrem Bishnoi
जवाब देंहटाएंरूपक अलंकार कै उदाहरणानां और लक्ष्मणेन
जवाब देंहटाएंNice ji
जवाब देंहटाएं👌
जवाब देंहटाएंKirti
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