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वृद्धिसन्धि:-VRIDHI SANDHI

अच् सन्धिप्रकरणम्- (Swar Sandhi)


वृद्धिसन्धि: - (Vridhi sandhi sanskrit)

Aach sandhi - vridhi sandhi

सूत्रम्  👉 वृद्धिरेचि

           अवर्ण (अ/आ) के बाद एच्  ( ए , ओ , ऎ  , औ ) के आने पर दोनो के स्थान पर वृद्धि एकादेश हो जाता है।

   वृद्धि क्या है ?

सूत्रम्  👉 वृद्धिरादैच्

             आ, ऎ  , औे ये तीन वृद्धि होते है।


        अ/आ   +  ए/ऐ      ⇰    ऐ
        अ/आ  +  ओ/औ    ⇰  औ




 अ/आ + ए/ऐ   ⇰  ऐ के उदाहारण-

     कृष्ण + एकत्वम्   =  कृष्णैकत्वम्
     सभा + एका        =   सभैका 
     सदा + एव           = सदैव
     वीर + एकः        =  वीरैकः
      राजा + एष:      = राजैष:
     पञ्च + एते        =  पञ्चैते
     मा + एवम्        =  मैवम्
     अत्र + एकम्        = अत्रैकम्
     देव + ऐश्वर्यम्     =  देवैश्वर्यम्
      बाला + एषा       =  बालैषा   
     वित्त + एषणा    =  वित्तैषणा
     देव + एकत्वम्   =  देवैकत्वम्
     जन + एकता   =  जनैकता
     विद्या + एषणा  =  विद्यैषणा
     सभा + एषा      =  सभैषा
     तव + एवम्      = तवैवम्
     महा + ऐरावत:  =  महैरावत:
       मम + ऐश्वर्यम्  =  ममैश्वर्यम्
      महा + ऐश्वर्यम्  = महैश्वर्यम्
      गङ्गा + ऐश्वर्यम्  = गङ्गैश्वर्यम्
     सदा + ऐहलौकिकम् = सदैहलौकिकम्
     सर्व + ऐक्यम्   = सर्वैक्यम्
     तव + ऐतिह्यम्  = तवैतिह्यम्


 अ/आ + ओ/औ  ⇰  औ के उदाहारण-

      जल + ओघः = जलौघः
      महा +  औदार्यम् =  महौदार्यम्
      गंगा + ओघः =  गंगौघः
      क्रीडा + औत्सुक्यम्  =  क्रीडौत्सुक्यम्
      मधुर + ओदनः       =  मधुरौदनः
      देव + औदार्यम्   =   देवौदार्यम्
      दर्शन + औत्सुक्यम् =  दर्शनौत्सुक्यम्
      तण्डुल + ओदनम्   = तण्डुलौदनम्
      तीक्ष्ण + औषधिः =  तीक्ष्णौषधिः
      परम + औषधिः  =  परमौषधिः
      अस्य + औचिती =   अस्यौचिती
      मम + औत्कण्ठ्यम् =  ममौत्कण्ठ्यम्
     सदा + औत्सुक्यम्  =  सदौत्सुक्यम्
      सुख + औपयिक:  =   सुखौपयिक:
      बिम्ब + औष्ठी =        बिम्बौष्ठी
     तव + औदार्यम्   =    तवौदार्यम्


विशेष:-  इन दो परिस्थितियो के अलावा कुछ स्थानो पर दूसरी सन्धि की प्राप्ति होने पर भी अपवाद स्वरुप वृद्धि कार्य सम्पन्न होता है । ये  प्रसङ्ग निम्न है जहाँ वृद्धि कार्य प्रवृत होता है।

1. एत्येधत्यूठसु
           अवर्ण (अ/आ) के बाद एच् प्रत्याहार वाली  इण धातु व एध् धातु या ऊह् के रहने पर पूर्व + पर के स्थान पर वृद्धि एकादेश हो जाता है।

    उप + एति = उपैति                    ( एडि पररूपम् का अपवाद )
     उप + एधते = उपैधते                ( एडि पररूपम् का अपवाद )
     उप + एता = उपैता                   ( एडि पररूपम् का अपवाद )
     अव + एति  = अवैति                 ( एडि पररूपम् का अपवाद )
     प्रष्ठ + ऊहः = प्रष्ठौहः                 ( आद्गुणः  का अपवाद )
      विश्व + ऊह: = विश्वौहः              ( आद्गुणः  का अपवाद )
     भार + ऊहः = भारौहरू             ( आद्गुणः  का अपवाद )
   
 2. अक्षादूहिन्यामुपसंख्यानम्
               अक्ष शब्द के आगे ऊहिनी रहने  पर पूर्व + पर ( अ + औ ) के स्थान पर वृद्धि एकादेश होता है।

      अक्ष + ऊहिनी = अक्षौहिणी                     ( गुण का अपवाद )                                                                                                                                                 ( णत्व  कार्य )


   3. प्रादूहोढोढ्येषैष्येषु
                 प्र के आगे ऊह, ऊढ, ऊढि, एष या एष्य रहने पर पूर्व + पर के स्थान पर वृद्धि एकादेश हो जाता है।

     प्र + ऊह: =  प्रौह:                            ( गुण का अपवाद )
     प्र + ऊढ: =  प्रौढ:                            ( गुण का अपवाद )
     प्र + ऊढि: = प्रौढि:                           ( गुण का अपवाद )
     प्र +  एषः  =  प्रैषः                            ( पररूप का अपवाद )
     प्र +  एष्य: = प्रैष्यः                          ( पररूप का अपवाद )

 4. ऋते च तृतीया समास
               तृतीया तत्पुरुष समास मे  अ/आ वर्ण  के बाद  ऋत शब्द के आदि ऋवर्ण के परे  रहने पर पूर्व + पर  के स्थान पर वृद्धि एकादेश हो जाता है।  ( अ + ऋ = आर् )

      सुखेन ऋतः      सुख +ऋत:   = सुखार्त:     (गुण का अपवाद)
       दुःखेन ऋत:     दुःख +ऋत:  =  दुखार्त:     (गुण का अपवाद)

5. प्र-वत्सतर-कम्बल-वसनार्ण -दशानाम् -ऋणे

  प्र,वत्सतर,कम्बल, वसन,ऋण,और दश इन छः शब्दो  के अन्त्य अवर्ण से परे ऋणशब्द के आदि ऋवर्ण होने  पर पूर्व +पर के स्थान पर वृद्धि एकादेश हो जाता है। (अ + ऋ = आर् )

     प्र +ऋणम् = प्रार्णम्                             (गुण का अपवाद)
     वत्सतर + ऋणम् = वत्सतरार्णम्           (गुण का अपवाद)
     कम्बल + ऋणम् = कम्बलार्णम्            (गुण का अपवाद)
     वसन + ऋणम् =  वसनार्णम्                (गुण का अपवाद)
     ऋण + ऋणम् =  ऋणार्णम्                   (गुण का अपवाद)
     दश़ + ऋण:  = दशार्णः                        (गुण का अपवाद)
       
6. उपसर्गाद्  ऋति धातौ

         अवर्णान्त (अ /आ अन्त वाले) उपसर्ग के आगे हस्व ऋकार से प्रारंभ होने वाला धातुरूप होने पर पूर्व + पर के स्थान पर वृद्धि एकादेश हो जाता है।                                (अ/आ + ऋ = आर्)


     उप + ऋच्छति  =  उपार्च्छति           (गुण का अपवाद)
      प्र + ऋच्छति  = प्रार्च्छति               (गुण का अपवाद)
      प्र + ऋणोति   = प्रार्णोति                (गुण का अपवाद)


सन्धि प्रकरण के अन्य महत्वपूर्ण पृष्ठ-

1.  सन्धि की परिभाषा ,प्रकार,सन्धि कार्य कब होता है
2 . गुण सन्धि के सूत्र, नियम,और उदाहरण

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