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यमक अलंकार लक्षण-उदाहरण-YAMAK ALANKAR LAKSHAN-UDAHARN

मक अलंकार:

यमक अलंकार

यमक अलंकारस्य लक्षणं - 

जिस काव्‍य में स्वर व्यञ्जन समुदाय की उसी क्रम में आवृत्ति होती हो, लेकिन अर्थवान् होने के स्थिति में, दोनों का अलग-अलग अर्थ होता हो वहाँ यमक अलंकार होता है ।

सत्‍यर्थे पृथगर्थाया: स्‍वरव्‍यंजनसंहते: ।

क्रमेण तेनैवावृत्तिर्यमकं विनिगद्यते ।।

ये आवृत्ति होने वाले दोनों शब्द  कहीं सार्थक, कहीं पर दोनों पद निरर्थक भी हो सकते है कहीं पर एक सार्थक तथा एक निरर्थक होता है। परन्‍तु उनकी आवृत्ति क्रम से ही  होती है ।  क्रम से आवृत्ति के अभाव में  यमक होकर अनुप्रास अलंकार हो जाता है ।

'यमक' शब्‍द की व्‍युत्‍पत्ति करते हुए काव्‍यप्रकाश की नागेश्‍वरी-टीका में  कहा गया है -

यमौ द्वौ समानजातिकौ, तत्‍प्रतिकृतिर्यमकम्

अर्थात् 'यम- शब्‍द का अर्थ: = युगलम् (जोड़ा) ।  यम शब्‍द (समान प्रतिकृति अर्थे) से 'कन्' प्रत्‍यय होकर यमक शब्द बना।

  इवे प्रतिकृताविति (पाणिनी सूत्र 5.3.96) कन् ।।

काव्‍यप्रकाश की दर्पणटीका में आचार्यविश्‍वनाथ ने 'यमक' की व्‍याख्‍या इस प्रकार की है -

'स्‍थानविशेषेषु यम्‍यते इति यमकम् '' ।

यमक अलंकारस्‍य भेदा: -

यमक अलंकार के आचार्य‍ विश्‍वनाथ ने तीन भेद माने है ।

1. उभयपद सार्थकम् ( दोनो पद सार्थक )

2. उभयपदनिरर्थकम् (दोनो पद निरर्थक )

3. क्‍वचित् एकं सार्थकम् अन्‍यं निरर्थकम् ।     ( एक पद सार्थक,अन्य पद निरर्थक )

सन्धि प्रकरण भी अवश्य पढ़े    👉   सन्धि प्रकरणम्  

यमक अलंकार के दो भेद ओर माने जाते है –

1.   पादावृत्तियमक।

2.   पादभागावृतियमक।

यमक अलंकारस्य उदाहरणम् -

नवपलाश-पलाशवनं पुर: स्‍फुटपरागपरागतपंकजम् ।

मृदुलतान्‍तलतान्‍तमलोकयत् स सुरभिं-सुरभिं सुमनोभरै: ।।

अत: क्रमश: 'पलाश' (पलाशपुष्‍प और पत्र), 'पराग' (पुष्‍पपराग और द्वितीय पराग निरर्थक), 'लतान्‍त' (प्रथम लतान्त निरर्थक और द्वितीय लतान्तलता का अन्तिमभाग”)  'सुरभि' (सुगन्धि और वसन्‍तऋतु) शब्‍दो की एकाधिकवार आवृत्ति हुई है, अतः यमक अलंकार है । इस उदाहरण में तीनों भेदो के उदाहरण एक साथ दृष्टव्य है।

प्रजा: प्रजाः स्वा इव तन्वयित्वा 

(प्रजा = प्रजा, प्रजा = पुत्रपौत्रादि (दोनों सार्थक)

 

वनान्तशय्याकठिनी कृताकृती, कचाचितौ विश्वगिवागजौ गजौ।

कथं त्वमेतौ धृति संयमौ यमौ विलोकयन्नुत्सहसे न बाधितुम्।।


सरस्वति प्रसादं मे स्थितिं चित्तसरस्वति।

 सरस्वति कुरु क्षेत्रकुरुक्षेत्र सरस्वति।।


विनायमेनो नयताऽसुखादिना विना यमेनोनयता सुखादिना

महाजनोऽदीयत मानसादरं महाजनोदी यतमानसादरम्।।


SANSKRIT GUIDE की महत्वपूर्ण पठनीय सामग्री  👉

 

इस अध्याय में हमने यमक अलंकार के लक्षण, उसके भेदों (प्रकारतथा उदाहरणो के बारे में पढ़ा | अगले अध्याय में हम अन्य शब्दालंकारो तथा अर्थालंकारो के लक्षण और उदाहरणो के बारे में विस्तार से पढ़ेंगे, तब तक के लिए-

जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम्  

 


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