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सन्धि- SANDHI SANSKRIT


सन्धिः

Sanskrit sandhi samany prichay

सन्धि शब्द की व्युत्पत्ति :
     सम् उपसर्ग + डुधाञ् धातु + कि प्रत्यय से सन्धि शब्द का निर्माण हुआ है

परिभाषाः

1.      वर्णसन्धानं सन्धिः।
2.      वर्णानां मेलनं सन्धिः।
3.      परः सन्निकर्षः संहिता। ( व्याकरण सम्मत परिभाषा ) 

सन्धिः संहिता वा नाम वर्णानाम् अतिशय सन्निधिः(सामीप्यम्) एव।
संहितायां वर्णविपरिणामः (लोपागमादेशवर्णविकाराः) एव सन्धिः।

          तीनों परिभाषाओं से यही सार निकलता है कि परस्पर दो वर्णो के मेल से उत्पन्न                विकार को ही सन्धि कहते है।
सन्धि को संहिता नाम से भी जाना जाता है।

     
सन्धिः कार्यम् चतुर्विधम् भवति

1.      लोपः - कही वर्णो का लोप होता है।
2.      आगमः- कही  नये वर्णो का आगम होता है।
3.      आदेशः- कही किसी वर्ण के स्थान पर दूसरा वर्ण हो जाता है।
4.      प्रकृतिभावः- किसी प्रकार का परिवर्तन नही होता है।



सन्धि कार्य कब नित्य होता है
                 
 संहितैकपदे नित्या, नित्या धातूपसर्गयोः।                               
 नित्या समासे वाक्ये तु सा विवक्षामपेक्षते।।

एकपद में नित्य 
     जे + अः यहॉं एक पद में सन्धिकार्य प्राप्त है, अतः नित्य होगी। 
धातूपसर्ग में नित्य           
           प्र एति यहॉं धातु से पूर्व उपसर्ग में सन्धिकार्य प्राप्त हैअतः नित्य होगी।
समास में नित्य 
           समस्तपद पद में यदि सन्धिकार्य प्राप्त है तो वहॉ पर नित्य सन्धि होगी।  यथा- नीलम् उत्पलम्= नीलोत्पलम्।
वाक्य में विवक्षा
            वाक्य में  वक्ता की ईच्छा पर निर्भर है चाहे तो सन्धियुक्त प्रयोग करे या नही करे।

सन्धि भेद

व्याकरण शास्त्र में पञ्च सन्धि प्रकरण बताए गए है अतः सन्धि के पाँच भेद होते है -
1.अच् सन्धिः।
2.प्रकृतिभाव सन्धिः।
3.हल् सन्धिः।
4.विसर्ग सन्धिः।
5.स्वादि सन्धिः।

परवर्ती व्याकरण शास्त्र में  प्रकृतिभाव सन्धिः को अच् सन्धिः में तथा स्वादि सन्धिः को विसर्ग सन्धिः में मान लेने पर सन्धि के तीन भेद माने जाने लगे -
1.अच् सन्धिः (स्वर सन्धि)-
  जहाँ स्वर वर्णों के स्थान पर कोई परिवर्तन हो वहां अच्सन्धि होती है। अर्थात (अच्+अच्)  
2.हल् सन्धिः (व्यञ्जन सन्धि)-
    जहाँ व्यञ्जन वर्णों के स्थान पर कोई परिवर्तन हो वहां हल् सन्धिः होती है।
   इसमें तीन स्थितियां बनती है
1.      हल् + हल्  
2.      हल् + अच्
3.      अच् + हल्
3.विसर्ग सन्धिः-
     जहाँ विसर्ग के स्थान पर कोई परिवर्तन हो वहां विसर्ग सन्धिः होती है।

इस अध्याय में हमने जाना कि सन्धि क्या है सन्धि के प्रकार, सन्धि कार्य कब नित्य होता है और सन्धि में कौन कौन से कार्य होते है।


 सन्धि प्रकरण के अन्य महत्वपूर्ण पृष्ठ-

1. गुण सन्धि के सूत्र, नियम और उदाहरण
2. वृद्धि सन्धि के सूत्र, नियम और उदाहरण

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