पररूप सन्धि-PARRUP SANDHI
अच् सन्धिप्रकरणम्
पररूपसन्धि:
सूत्रम् 👉 एङि पररूपम्
अकारान्त उपसर्ग के बाद किसी धातु के एङ् वर्ण
(ए,ओ) हो तो पूर्व-पर दोनों वर्णों के स्थान पर पररूप एकादेश हो जाता है। ये सूत्र
वृद्धि सन्धि का अपवाद है|
अकारान्त
उपसर्ग
+ एङादि
धातु (ए,ओ)
⇰ पररूप
आदेश (बाद वाला)
उदाहरण 👉
प्र + एजते ⇰
प्रेजते ( अ + ए ⇰ ए पररूप
)
प्र + एषयति ⇰
प्रेषयति ( अ + ए ⇰ ए पररूप
)
परा + एलयति ⇰
परेलयति ( आ + ए ⇰ ए पररूप
)
उप + ओषति ⇰
उपोषति ( अ + ओ ⇰ ओ पररूप
)
प्र + ओषति ⇰ प्रोषति ( अ + ओ ⇰ ओ पररूप
)
सूत्रम् 👉 शकन्ध्वादिषु पररूपम् वाच्यम्
शकन्ध्वादिगण में पठित शब्दों में टि को पररूप
कार्य होता है|
टि क्या है ? 👉
सूत्रम् 👉 अचोऽन्त्यादि टि
‘टि’ से तात्पर्य किसी शब्द के स्वरों में से
अंतिम स्वर के आगे यदि कोई व्यंजन है तो वह पूरा समुदाय तथा अंतिम स्वर के आगे कोई
व्यंजन न हो तो वह अंतिम स्वर ही ‘टि’ कहलाता है|
जैसे- मनस् में ‘अस्’ ‘टि’ है|
पतत् में ‘अत्’ ‘टि’ है|
शक
में ‘अ’ ‘टि’ है|
उदाहरण 👉
शक + अन्धु: = शकन्धु:
कर्क
+ अन्धु:
= कर्कन्धु:
मार्त + अण्ड: = मार्तण्ड:
कुल + अटा = कुलटा
हल + ईषा
= हलीषा :
मनस् + ईषा = मनीषा
पतत् + अञ्जलि: = पतञ्जलि:
सीम +
अन्त:
= सीमन्त:
सार + अङ्ग: = सारङ्ग:
सूत्रम् 👉 ओत्वोष्ठयो: समासे वा (वार्तिक)
अकारान्त शब्दों के आगे ओतु या ओष्ठ के रहने पर
विकल्प से पररूप एकादेश होता है| ये कार्य केवल समास होने पर ही होता है जहाँ समास
नही है वहाँ नही होगा | पररूप के अभाव में विकल्प में यथाप्राप्त वृद्धि एकादेश
होता है |
उदाहरण 👉
स्थूल
+ ओतु:
= स्थूलोतु: विकल्प में = स्थूलौतु: (कर्मधारय समास)
बिम्ब
+ ओष्ठ:
= बिम्बोष्ठ: विकल्प में = बिम्बौष्ठ:
(बहुव्रीही समास)
दन्त + ओष्ठम् = दन्तोष्ठम्
विकल्प
में = दन्तौष्ठम्
(समाहार द्वन्द्व समास)
कण्ठ + ओष्ठम् = कण्ठोष्ठम् विकल्प
में = कण्ठौष्ठम् (समाहार द्वन्द्व समास)
सूत्रम् 👉 ओमाङोश्च
अवर्ण के बाद ओम् या आङ् (आ) हो तो पररूप एकादेश होता है |
शिवाय + ओम्
= शिवायोम्
इस अध्याय मे
हमने पररूप सन्धि के सूत्र, नियम तथा उदाहरण बारे मे
सीखा।
सन्धि प्रकरण के अन्य महत्वपूर्ण पृष्ठ-
2. वृद्धिसन्धि के सूत्र, नियम और उदाहरण
3. गुण सन्धि के सूत्र, नियम,और उदाहरण
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